Tuesday 29 January 2013

 याद  आ जाते  है वह  छुटपन  के दिन
वोह  बचपन के  रेले वोह हंसी के मेले
वोह  छुप के  मस्तियाँ , वोह नाव और कश्तियाँ
काग़ज़ों की ख़ुशी , पल भर की हंसी
पल भर का  बिगड़ना पल भर का रोना
पेड़ों  पर चढ़ कर  किताबों में डूब जाना
रातों के अंधेरों मैं चारपयों पर कभी
तारों के नीचे सपने पिरोना
डर से कभी आँखे ज़ोर से मींचना
पतंगे उड़ना  फुटबॉल को भगाना
 घुटनों की ख़रोचों से साइकिल चलाना
डांट खा कर पल में भूल जाना
 इमली  का पेड़ और पीपल की छाव
 झूलों से आसमानों को मिलने की चाह
ना बुलंद इरादे न महलों के सपने 
सिर्फ़ छोटे से  हाथों से दिन का समेटना 

बदल गई है हंसी , ग़म के पल भी
याद आ जाते हैं उनमे वह मासूम ख़ुशी
जब भी ख़ालीपन सताता है
यादों की गलियों में दिल टहल जाता है
अकेलापन भी  बहुत अजीब है
यादों के बहुत  क़रीब है !

1 comment:

austere said...

beautiful.
insaan bheed main bhi akelahota hai.