Sunday 5 July 2015

चोट किसी को दे खुद आप ही चोट खाया  है
बंदी किसी को बना खुद ही बंदी बन जाया है
बहाया किसी का खून क्या तेरा खून बच पाया है?
जो करा  किसी का अपमान तो अपमानित तुम न हुए ?
छीन किसी की रोटी  भूके तुम ही रह गए
लड़ाई किसी और से कर खुद अपने  से ही लड़ पड़े
अपने नक़्शे कदम पर पीढ़ियों को ले चले
मिला था एक अवसर शांति अमन का
गवा बैठे अपने को गवाने में